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भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय के समन्वयक श्री जिग्मे त्सुल्ट्रीम |
भारत देश के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में हमें यह तो पढ़ाया जाता है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भूूटान, म्यांमार, श्रीलंका हमारे पड़ोसी देश हैं, लेकिन यह कभी नहीं बताया जाता कि तिब्बत देश भी भारत का एक पड़ोसी देश है। ऐसे ही कुछ दर्द उभरकार सामने आया निर्वासित भारत-तिब्बत सरकार के समन्वयक श्री जिग्मे त्सल्ट्रीम का । श्री जिग्मे एक दिन के अल्प प्रवास पर भोपाल आये, जहां उन्होंने तिब्बत को लेकर नीरज चौधरी से अपना दर्द सांझा किया।
वे कहते हैं कि वर्ष 1959 में चीन ने तिब्बत को अपने कब्जे में लिया था। उस समय अनेकों तिब्बतियों ने अपना देश छोड़ दिया, जिन्हें निर्वासित तिब्बती कहा गया। डेमोग्रेफिक सर्वे के अनुसार 1 लाख 29 हजार निर्वासित तिब्बती हैं। उनमें से 92 हजार 480 के करीब भारत में और शेष नेपाल, भूटान तथा अमेरिका में रह रहे हैं। भारत में रहने वाले तिब्बतियों की निर्वासित सरकार की राजधानी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में है।
चीन किस तरह तिब्बती बच्चों को भी नहीं बख्श रहा, इसका ताजा उदाहरण यह है कि शिक्षक नैनिहालों को अपने कमरे में बुलाते हैं और उनसे अंधेरे कमरे की ओर इशारा करके कहते हैं,-‘वहां, जाओ।’ अबोध बालक-बालिकाएं जब अंधेरे कक्ष में जाते हैं, तो उनसे पूछा जाता है-‘बताओ, यहां क्या दिख रहा है ?’ तब बच्चों का उत्तर होता है,-‘अंधेरा।’ शिक्षक फिर उन्हें बड़े प्यार से बोलता है कि, ‘ वहां कुछ दबाने की चीज़ है (उसे स्विच नहीं बताया जाता)..उसे दबाओ..और जब बच्चा ‘स्विच’ को दबाता है, तो पूरे कमरे में उजाला हो जाता है। कक्ष में रौशनी आते ही कोरे कागज़़ के दिल जैसा बच्चा ख़ुशी से उछल पड़ता है। फिर उसे समझाया जाता है कि, अपने घर जाकर माता-पिता से पूछना कि क्या उनके धर्मगुरु दलाई लामा के ज़माने में ऐसा होता था? क्या उनके राज्य के धर्मगुरुओं ने उन्हें विद्यालयों में पंखे-कूलर दिए थे? बच्चों, यह सब चीन की देन है। इन सब तथाकथित प्रगतिशील बातों से उन नैनिहालों के मस्तिष्क पर का गहरा प्रभाव पड़ता है।
इस प्रकार की घटना कोई भारत के स्कूल में नहीं, यह होता है चीन के कब्जे वाले तिब्बत में। वहां की बची हुई आबादी को किस प्रकार मैनुपुलेट कर चीन परस्त बनाया जाए और किस तरह से विगत सालों में तिब्बतियों को चीनी बना दिया जाए, ऐसे ही कुछ कुत्सित षड्यंत्र चीन की तरफ से जारी हैं।
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प्रदेश संवाददाता पत्रिका में प्रकाशित साक्षात्कार |
चीन की ओर से किए गए तिब्बत की जनता के जन-जीवन के विकास, शिक्षा, रोजगार की पोल खोलते हुए जिग्मे बताते हैं कि निर्वासित तिब्बतियों का साक्षरता प्रतिशत 85 फीसदी है और चीन के आधपित्य वाले तिब्बत में लोगों का साक्षरता प्रतिशत 25 से भी कम। इसके अलावा वहां तिब्बती को पांच युआन, तो वहीं चीनी व्यक्तियों को 30 युआन मजदूरी में मिलते हैं। यह कुछ नहीं, अरुणाचल प्रदेश तक के कई हिस्सों में चीनी रेडियो स्टेशनों से हिन्दी गाने बजाए जाते हैं, ताकि इन सटे हुए प्रदेशों की जनता को ‘मैनुपुलेट’ कर सकें।
भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय में समन्वयक की भूमिका निभा रहे जिग्मे त्सल्ट्रीम ने चीन के कब्जे वाले तिब्बत की समस्याओं का जिक्र करते हुए बताया कि, तिब्बत की राजधानी ल्हासा में हम लोग अल्पसंख्यक बन कर रह गए हैं, क्योंकि चीन के वर्ष 1959 में आधिपत्य के समय से तिब्बत में चीनियों की संख्या काफी तादाद में बढ़ी है। हमारी सरकार के आंकड़ों की माने, तो 1.2 मिलियन तिब्बती हैं और चीन के मुताबिक 2.5 मिलियन तिब्बती वहां रह रहे हैं। सुनियोजित ढंग से दूसरी संस्कृति, भाषा, खान-पान के लोगों को तिब्बत में बसाकर जातीय तौर पर प्रहार हो रहा है, जो चिंता का विषय है।
उन्होंने बताया, ब्रम्हपुत्र, इंडस, गंगा जैसे बहुत-सी नदियों का उद्गम तिब्बत से हो रहा है। वहां पर बिना किसी तरीके से अध्ययन करते हुए चीन बिजली उत्पादन के मद्देनजर बड़े-बड़े बांध बना रहा है। चीन अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए लगातार तिब्ब्त जैसे सुंदर जगह का शोषण करने पर तुला है। ब्रम्हपुत्र नदी तिब्बत से होते हुए असम, गोवा तक आती है, जिसके किनारे बसने वाले इंसानों का जीवन-यापन उसी नदी पर निर्भर है। किन्तु देखने में आ रहा है कि ब्रम्हपुत्र नदी पर चीन द्वारा बनाए गए बांधों से नदी किनारे बसी इंसानों की बसाहट का जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। इसका कारण पूछने पर त्सुल्ट्रीम ने बताया, चीन जब चाहे तब बांधों से निर्बाध गति से पानी छोड़ता है, जिससे वहां बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं एवं कृषि-जीव-जन्तुओं पर असर पड़ता है और जब जरूरत पड़ती है तब बांधों से पानी छोड़ा नहीं जाता। तिब्बत में पैदा होने वाले खनिज पदार्थों मसलन, बॉक्साइट, कॉपर, मिनिरल्स का चीन बेहिसाब दोहन कर रहा है। इधर, तिब्बत के पश्चिमी क्षेत्र से वनों का कटाव करके चीन अपनी क्रूरतावादी नीतियों के कारण वहां नाश करने पर उतारू है।
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प्रदेश संवाददाता पत्रिका में प्रकाशित साक्षात्कार |
चीन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बैन
भौगोलिक और प्राकृतिक समस्या से इतर राजनैतिक समस्या पर भारत-तिब्बत समन्वयक जिग्मे त्सुल्ट्रीम ने पर चीन की तानाशाही का एक मजमून बताया। बकौल जिग्मे,-‘‘तिब्बत का आम नागरिक भी अगर दलाई लामा की तस्वीर अपने पास रखता है, तो उसे इस आरोप में जेल भेज दिया जाता है। जहां भारत में सुप्रीम कोर्ट ने भी आईटी एक्ट की धारा 66ए को रद्द कर दिया है यानि अब फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप जैसी सोशल मीडिया पर अपने विचार बे-रोकटोक साझा किया जा सकता है, वहीं चीन और तिब्बत में इन सभी सोशल साइट्स के संचालन पर पाबंदी है। चीन में विबर मैसेंजर पर सरकार की पैनी नजर रहती है कि कौन, किससे, क्या बातें कर रहा है। इस बातों से पता चलता है कि चीन में किस तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बैन है।’’
तिब्बतियों की इस परिस्थितियों को जानते हुए भी क्या तिब्बत का अभिन्न मित्र भारत उसकी मदद नहीं रहा है ? इस सवाल के जवाब में जिग्मे कहते हैं कि यह मुद्दा काफी जटिल है। तिब्बत के मुद्दों की यथास्थिति को लेकर भारत सरकार के जेहन में सब कुछ है, पर भारत का चीन से वाणिज्यिक, आथर््िाक और राजनैतिक संबंध है। चीन की जीडीपी के ऊपर भारत भी अपनी बढ़ाना चाहता है। इसलिए भारत की भी कुछ मजबूरियां हैं। परन्तु ऐसा भी नहीं है कि भारत निर्वासित तिब्बतियों या चीन आधिपत्य तिब्बत के विषय पर गंभीर न हो।
श्री जिग्मे के मुताबिक, तमाम बिन्दुओं पर समय-समय हमें भारत का योगदान मिलता रहा है। मसलन, पिछले वर्ष सितंबर में चीन राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत दौरे के वक्त भारत ने यह संकेत दिया था कि, चीन केवल उन मुद्दों पर फोकस करे जिनका भारत और चीन के साथ सीधा संबंध हो। मसलन, चीन से कोई जम्मू कश्मीर में यात्रा करना चाहता है तो वहां से स्टेपल (नत्थी)वीजा ले आता था हालांकि, भारत के कड़े विरोध के कारण यह बंद हो चुका। चीन भी विवादित विषय को प्रोपोगेट करता है और इसी निमित्त फरवरी में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अरुणाचल प्रदेश (ईटानगर) दौरे को लेकर चीन सरकार ने काफी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। चीनी मीडिया भी कहता है कि भारत के प्रधानमंत्री का अरुणाचल दौरा संबंधों को आघात पहुंचा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का मई में चीन का दौरा है, इसके लिए भी चीनी मीडिया मोदी को सलाह दे रहा है।
तिब्बत को राजनैतिक सपोर्ट की जरूरत
जिग्मे त्सुल्ट्रीम ने भारत के सियासतदांओं को आगाह करते हुए कहा कि, तिब्बत से चीन के कब्जे के हटाने को लेकर 136 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं और इसी विस्तारवादी चीन ने तिब्बत के बाद भारत में भी समस्याएं पैदा करना शुरू कर दिया है। आग अभी आपके घर से दूर है, लेकिन सतर्क नहीं हुए तो यह आग आपके घर तक भी पहुंच जाएगी। इसलिए भारत की तरफ से तिब्बतियों को राजनैतिक सपोर्ट की जरूरत है। तिब्बती होने के नाते हमारी भरत सरकार से अपेक्षा हैं कि चीन के साथ हरेक क्षेत्र में रिश्ते बेहतर हों, पर तिब्बत के विषय को बिना सुलझाए सक्रिय -सक्षम कदम नहीं उठाएंगे, तब तक चीन इसी मार्ग से आपका ही फायदा उठाता रहेगा।
विदेश नीति को लेकर क्या भारत की नीति में खामियां हैं?, के विषय में जिग्मे का कहना है कि, ‘भारत की विदेश नीति पर दूरगामी दृष्टि नहीं हैं, यह कहना पूर्णत: सही नहीं है। इस प्रश्र को टालते हुए उन्होंने बताया भारत के अलावा तिब्बत को अभी यूरोपीय देशों जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, अमेरिका का समर्थन अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मिलता रहा है। मसलन, अमेरिका में मार्च की शुरुआत में वहां के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन के कड़े विरोध बावजूद सुबह का नाश्ता तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के साथ किया, क्योंकि मानवाधिकार को लेकर अमेरिका की नीति स्पष्ट है।
अमेरिका में विभिन्न प्रकार के मानवों का इतिहास रहा है। इसलिए वे इसे नजरंदाज नहीं करेंगे। तिब्बतियों का समर्थन किस हद तक है, इसका उदाहरण देते हुए जिग्मे ने बताया कि नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित लोगों के कार्यक्रम में बुलाए गए दलाई लामा का साउथ अफ्रीका ने अंतिम समय में वीजा कैंसिल कर दिया था, जिसके कारण अन्य लोग भी कार्यक्रम में नहीं गए और दलाई लामा के सम्मान में कार्यक्रम केपटाउन के बजाय इटली के रोम में किया।
मौजूदा भारत सरकार की नीति-नीयति सराहनीय
जिग्मे के मुताबिक, भारत का राजनैतक उद्देश्य भले ही कुछ हो, मगर जब कभी मैं भारत में इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) की बसों और कैंपों को देखता हूं, तो भारत सरकार गर्व होता है। अगर, भारत की नीयत-नीति साफ नहीं होती तो यहां की सरकारें भारत चीन सुरक्षा बल भी तो बना सकती थीं। उन्होंने बताया कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली से अरुणाचल के नाहरलागुन तक रेल को हरी झंडी दिखाकर चीन को कूटनीतिक जवाब दिया है, क्योंकि चीन ने भी सिक्किम के करीब तक रेल पटरियां बिछा दी हैं।
दलाई लामा में अटूट विश्वास
जिग्मे ने बताया कि प्रदेश के अमरावती जिले में 30वीं काल चक्र पूजा हुए थी। जिसमें 2-3 लाख तिब्बती सम्मिलित हुए थे। चूंकि समुद्र तल से तिब्बत 13 हजार फीट ऊंचा और 4 हजार फीट नीचाई में होने के कारण तिब्बत का वातावरण बहुत सर्द है और कुछ तिब्बती लामा इससे बचने चीते, तेंदुए की खाल का पहनावा पहनने लगे थे और उसे दिखावे के रूप में प्रदर्शित करते रहे हैं। इस पर कुछ लोगों ने प्रतिक्रियाएं दीं कि तिब्बती शो ऑफ करने कुछ गलत कार्य कर रहे हैं। काल चक्र पूजा के दौरान दलाई ने यह मुद्दा उठाया कि यह सब तिब्बती संस्कृति को दर्शाता नहीं है। धर्मगुरु लामा ने कहा कि, आप लोगों के कारण मैं शर्मिंदा हूं। जब यह संदेश तिब्बत गया तो सबने ऐसे पहनावे का बहिष्कार किया। ठीक उस प्रकार जिस प्रकार स्वतंत्रता आंदोलन के समय जब भारत में गांधी की संदेश का इफेक्ट होता था। उक्त वाकया यह दर्शाता है कि दलाई लामा ही हमारे दार्शनिक, आध्यात्मिक और धार्मिक गुरु हैं। हमारी मांगें हैं कि दलाई लामा दीर्घ आयु तक रहें, दलाई लामा को तिब्बत में आने दिया जाए और तिब्बत हमें वापस दिया जाए। हर वर्ग उम्र का यह मांग कर रहे हैं। इसको लेकर 136 लोग आत्महत्या कर चुके हैं।
पंडित नेहरू की नीति साफ थी
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमिका पर जिग्मे त्सुल्ट्रीम का कहना है कि पंडित नेहरू की नीयत के बारे में कुछ नहीं कहूंगा लेकिन, उनकी नीति बहुत साफ थी। उनके के अनुसार पंडित नेहरू ने कहा था कि, तिब्बत की निर्वासित सरकार को हम राजनैतिक तौर पर स्वीकार नहीं कर सकेंगे, लेकिन हां, तिब्बत की आजादी के संघर्ष को जीवित रखना चाहते हो, तो अपने बच्चों को शिक्षित कीजिए, ताकि वो आपकी संस्कृति को जीवित रखेंगे। जिग्मे के मुताबिक, स्कूलों में भारत सरकार का बहुत बड़ा योगदान है। भारत और नेपाल में स्थित करीब 73 तिब्बती स्कूल-कॉलेजों में 25 हजार बच्चे पढ़ रहे हैं और महाविद्यालयों में 500 गे्रजुएट विद्यार्थी प्रतिवर्ष निकल रहे हैं, जबकि तिब्बत में चीन इतने विकास के बड़े वादे करता है, रोजगार की बात करता है, फिर भी यहां साक्षरता प्रतिशत 25 से भी कम है।
तिब्बत मसले पर भारतीय संगठनों का पूरा सपोर्ट
भारतीय संगठन तिब्बत मसले को लेकर हमारा भरपूर सहयोग कर रहे हैं। भारत-तिब्बत सहयोग मंच की 18-19 शाखाएं, भारत-तिब्बत मैत्री संघ की 25-28 शाखाएं, लद्दाख से अरुणाचल में फैले हिमालयन एक्शन कमेटी फॉर पीस इन तिब्बेट की 8-9 शाखाएं, नागपुर से संपूर्ण महाराष्ट्र में फैली अमेरिकन विचारधारा के संगठन नेशन कैंपन फॉर फ्री टिबेट, अंतर्राष्ट्रीय भारत-तिब्बत सहयोग समिति मेरठ , इंटरनेशल यूथ फोर फ्रंट टिबेट हरियाणा के हजारों सदस्य एक आवाज पर तिब्बत के साथ आने को तैयार रहते हैं। वहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचारक इंद्रेश कुमार द्वारा बनाया गया भारत-तिब्बत सहयोग मंच संगठन ने भी तवांग यात्रा समेत देशभर में संगोष्ठियां शुरू कर चीन पर कूटनीतिक दबाव डालना शुरू कर दिया है, जो निश्चित ही हमें हमारा लक्ष्य तक पहुंचाने में सहायक सिद्ध होगा।
साक्षात्कारकर्ता -
नीरज चौधरी
संपर्क संख्या - 09425724481